निर्मल वर्मा
जन्म : १९२९ ।
जन्मस्थान : शिमला। बचपन पहाड़ों पर बीता।
शिक्षा : सेंट स्टीफेंसन कालेज, दिल्ली से इतिहास में एम. ए. । कुछ वर्ष अध्यापन भी किया।
१९५९ में प्राग, चेकोस्लोवाकिया के प्राच्यविद्या संस्थान और चेकोस्लोवाकिया लेखक संघ द्वारा आमन्त्रित। सात वर्ष चेकोस्लोवाकिया में रहे और कई चेक कथाकृतियों के अनुवाद किये। कुछ वर्ष लंदन में यूरोप प्रवास के दौरान टाइम्स आफ इन्डिया के लिये वहां की सांस्कृतिक-राज्नीतिक समस्याओं पर लेख और रिपोर्ताज लिखे।
१९७२ में भारत वाप्सी। इसके बाद इन्डियन इंस्टीट्यूट आफ एड्वांस स्टडीज़ (शिमला) में फेलो रहे और मिथक चेतना पर कार्य किया। १९७७ में इंटरनेशनल राइटिंग प्रोग्राम, आयोवा(अमेरिका) में हिस्सेदारी।
उनकी 'मायादर्पण' कहानी पर फिल्म बनी जिसे १९७३ में सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फिल्म का पुरस्कार प्राप्त हुआ।
वे निराला सृजन पीठ, भॊपाल (१९८१-८३) और यशपाल सृजन पीठ शिमला(१९८९) के अध्यक्ष भी रहे।
१९८७में इंग्लैंड के प्रकाशक रीडर्स इंटरनेशनल द्वारा निर्मल वर्मा का कहानी संग्रह 'द वर्ल्ड एल्सव्हेयर' प्रकाशित किया गया। उसी अवसर पर उनके व्यक्तित्व पर बी.बी.सी चैनल४ पर एक प्रसारित व इंस्टीट्यूट आफ कान्टेम्प्रेर्री आर्ट्स (आई.सीए.) द्वारा अपने वीडियो संग्रहालय के लिये उनका एक लंबा इंटरव्यू रिकार्डित किया गया।
उनकी पुस्तक क्व्वे और कालापानी को साहित्य अकादमी (१९८५)से सम्मानित किया गया।
संपूर्ण कृतित्व के लिये १९९३ का साधना सम्मान दिया गया।
उ.प्र. हिंदी संस्थान का सर्वोच्च राम मनोहर लोहिया अतिविशिष्ट सम्मान (१९९५) में मिला।
भारतीय ज्ञान पीठ का मूर्तिदेवी सम्मान (१९९७) में मिला।
प्रकाशित पुस्तकें:
वे दिन, लाल टीन की छत, एक चिथड़ा सुख, रात का रिपोर्टर (उपन्यास);
परिंदे, जलती झाड़ी, पिछली गर्मियों में, कव्वे और काला पानी, प्रतिनिधि कहानियां, मेरी प्रिय कहानियां, बीच बहस में, सूखा तथा अन्य कहानियां (कहानी संग्रह);
चीड़ों पर चांदनी, हर बारिश में (यात्रा संस्मरण);
शब्द और स्मृति, कला और जोखिम, ढलान से उतरते हुये, भारत और यूरोप: प्रतिश्रुति के क्षेत्र, शताब्दी के ढलते वर्षों में (निबन्ध);
तीन एकांत नाटक)
दूसरी दुनिया (संचयन)
अंग्रेजी में अनुदित :
डेज़ आफ लागिंग. डार्क डिस्पैचेज़, ए रैग काल्ड हैपीनैस (उपन्यास)
हिल स्टेशन, क्रोज़ आफ डिलीवरेम्स, द वर्ल्ड एल्स्व्हेयर, सच ए बिग इयर्निंग (कहानियां)
वर्ल्ड एंद मेरी (निबन्ध)
हिन्दी में अनुदित: कुप्रीन की कहानियां
1 comment:
पहली बार आपका ब्लाग देखा , यह एक विशिष्ट ब्लाग है साहित्य के प्रति आपका समर्पण देख सुखद आश्चर्य हुआ , ब्लाग जगत में ऐसे ब्लाग्स पर, बहत कम ही पीठ थपथपाई जाती है !
उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया मिलने की परवाह न करते हुए इस गुरुतर कार्य को आगे बढ़ाती रहें ! मैं आपके किये मंगल कामना करता हूँ !
सादर !
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