Wednesday, January 20, 2010
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' अधुनिक हिन्दी साहित्य के महान महान स्तन्भ थे। वे एक कवि, उपन्यासकार, निबन्धकार और कहानीकार थे। उन्होंने कई रेखाचित्र भी बनाये। उनके जीवन काल में उनकी प्रतिभा को पहचाना नहीं गया। उनके क्रान्तिकारी और स्वच्छन्द लेखन के कारण उनका साहित्य अप्रकाशित ही रहा।
निराला का पूरा जीवन, एक थोङे समय को छोङकर, दुर्भाग्य और विपत्ति का अनुक्रम था। उनका जन्म उन्नाव जिले के गढाकोला गांव के एक कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में, बसन्त पञ्चमी के दिन, १८९७ में हुआ। उनके पिता का नाम पं रामसहाय था, जो बंगाल के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर जिले में एक सरकारी नौकरी करते थे। निराला का बचपन बंगाल के इस क्षेत्र में बीता जिसका उनके मन पर बहुत गहरा प्रभाव रहा है। तीन वर्ष की अवस्था में उनकी मां की मृत्यु हो गयी और उनके पिता ने उनकी देखरेख का भार अपने ऊपर ले लिया।
निराला की शिक्षा यहीं बंगाली माध्यम से शुरु हुई। हाईस्कूल पास करने के पश्चात उन्होंने घर पर ही संस्कृत और अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया। प्रारम्भ से ही राम चरित मानस उन्हें बहुत प्रिय था। वे हिन्दी, बंगला, अंग्रेजी और संस्कृत भाषा में निपुण थे और श्री राम कृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द और श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर से विशेष रूप से प्रभावित थे।
निराला स्वच्छन्द प्रकृति के थे और स्कूल में पढने से अधिक उनकी रुचि घुमने, खेलने, तैरने और कुश्ती लङने इत्यादि में थी। संगीत में उनकी विशेष रुचि थी। अध्ययन में उनका विशेष मन नहीं लगता था। इस कारण उनके पिता कभी-कभी उनसे कठोर व्यवहार करते थे, जबकिउनके हृदय में अपने एकमात्र पुत्र के लिये विशेष स्नेह था।
हाईस्कूल करने के पश्चात वे लखनऊ और उसके बाद गढकोला (उन्नाव) आ गये। पन्द्रह वर्ष की अल्पायु में उनका विवाह मनोहरा देवी से हो गया। रायबरेली जिले में डलमऊ के पं. रामदयाल की पुत्री मनोहरा देवी सुन्दर और शिक्षित थीं, उनको संगीत का अभ्यास भी था। पत्नी के जोर देने पर ही उन्होंने हिन्दी सीखी।
इसके बाद अतिशीघ्र ही उन्होंने बंगला के बजाय हिन्दी में कविता लिखना शुरु कर दिया। बचपन के नैराश्य और एकाकी जीवन के पश्चात उन्होंने कुछ वर्ष अपनी पत्नी के साथ सुख से बिताये., किन्तु यह सुख ज्यादा दिनों तक नहीं टिका और उनकी पत्नी की मृत्यु उनकी २० वर्ष की अवस्था मॆं ही हो गयी। बाद में उनकी पुत्री जो कि विधवा थी, की भी मृत्यु हो गयी। वे आर्थिक विषमताओं से भी घिरे रहे। ऎसे समय में उन्होंने विभिन्न प्रकाषकों के साथ प्रूफ रीडर के रूप मॆं काम किया, उन्होंने 'समन्वय' का भी सम्पादन किया।
निराला को सम्मान बहुत मिला। परन्तु उनके संघर्ष के स्तर और संदर्भ को समझना उनके विरोधियों के लिये जितना मुश्किल था, उतना ही उनके प्रशंसको के लिये भी।
अंततः अपने मानसिक और शारीरिक संघर्ष को झेलते हुये निराला की मृत्यु दारागंज ( इलाहाबाद) में १५ अक्टूबर १९६१ में हो गयी।
प्रमुख कृतियां:-
कविता संग्रह: परिमल,अनामिका, गीतिका, कुकुरमुत्ता, आदिमा, बेला, नये पत्त्ते, अर्चना, आराधना, तुलसीदास, जन्मभूमि।
उपन्यास: अप्सरा, अल्का, प्रभावती, निरूपमा, चमेली, उच्च्श्रंखलता, काले कारनामे।
कहानी संग्रह: चतुरी चमार, शुकुल की बीवी, सखी, लिली, देवी।
निबन्ध संग्रह: प्रबन्ध-परिचय, प्रबन्ध प्रतिभा, बंगभाषा का उच्चरन, प्रबन्ध पद्य, प्रबन्ध प्रतिमा, चाबुक, चयन, संघर्ष।
आलोचना: रविन्द्र-कविता-कन्नन।
अनुवाद: आनन्द मठ, विश्व-विकर्ष, कृष्ण कान्त का विल, कपाल कुण्डला, दुर्गेश नन्दिनी, राज सिंह, राज रानी, देवी चौधरानी, युगलंगुलिया, चन्द्रशेखर, रजनी, श्री रामकृष्णा वचनामृत, भारत में विवेकानन्द, राजयोग।
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