Thursday, December 3, 2009

उठ उठ री लघु लोल लहर

उठ उठ री लघु लोल लहर
करुणा की नव अंगराई सी,
मलयानिल की परछाई सी,
इस सूखे तट पर छिटक छहर।
शीतल कोमल चिर कम्पन सी,
दुर्लभित हठीले बचपन सी,
तू लौट कहां जाती है री-
यह खेल खेल ले ठहर ठहर!
उठ-उठ गिर-गिर फिर-फिर आती,
नर्तित पद-चिन्ह बना जाती,
सिकता की रेखायें उभार-
भर जाती अपनी तरल सिहर!
तू भूल न री, पंकज वन में,
जीवन के इस सूने पन में,
ओ प्यार पुलक हे भरी धुलक!
आ चूम पुलिन के विरस अधर!

दो बूंद
शरद का सुन्दर नीलाकाश,
निशा निखरी, था निर्मल हास।
बह रही छाया पथ में स्वच्छन्द,
सुधा सरिता लेती उच्छवास।
पुलक कर लगी देखने धरा,
प्रकृति भी सकी न आंखे मूंद,
सुशीतल कारी शशि आया,
सुधा की मानो बङि सी बूंद।
हरित किसलय मय कोमल वृक्ष,
झुक रहा जिसका --- भार,
उसई पर रे मत वाले मधुप!
बैठकर भरता तू गुञ्जार,
न आशा कर तू अरे! अधीर
कुसुम रस- रस ले लूंगा मूंद,
फूल है नन्हा सा नादान,
भरा मकरन्द एक ही बूंद।
[झरना- जय शंकर प्रसाद ]

3 comments:

सागर said...

ओह! दूसरा झटका... ऐसे तो ऑल आउट हो जाऊंगा...

DAMANDELHI.BLOGSPOT.COM said...

[01/12/2016, 10:06 a.m.] Bhat Mam Hal: 🌺आशा अमरधन 🌺
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हर बार एक,
हर बार नया,
जाने मैं कितनी दूर तक गया. !
भविष्य काे देखा,
भूत काे खाेया,
वतॆमान में ना जाने,
क्या ले कर बाेया !
छाेटा सा सपना आँखाें में संजाेया,
यह ले कर मैं सारी रात ना साेया !
फिर एक दिन नसीब ने कहा,
तू किस्मत से आगे चल ।
भूल जा तू अपने बीते हुए पल,
नसीब काे भला काेई बदल है पाया !!
वह सब उसने श्रम से दिखलाया ।।

सी0 के0 तिवारी 💐🙏
[04/05, 10:46 a.m.] 🌹: जिंदगी के किराये का घर है, एक न एक दिन बदलना पड़ेगा । मौत जब तुझको आवाज देगी, घर से बाहर निकलना पड़ेगा ।।🌿🌷☘ सुप्रभात 🌷🙏
[08/05, 7:46 a.m.] 🌹: एक छोटा सा सपना है प्यार, कोई अपना है प्यार। साॅसों का चलना है प्यार, साॅसों का ढलना है प्यार, सूरज का उगना है प्यार, सूरज का ढलना है प्यार, सागर की गहराई है प्यार, अंतरिक्ष की ऊँचाई है प्यार, अपनों का बिछड़ना है प्यार, बिछड़ों का मिलना है प्यार, किसी की आहट है प्यार, किसी का आभाष है प्यार, तकरार में है प्यार, इनकार में है प्यार, आशा में है प्यार, निराशा में है प्यार, सागर में है प्यार, एक बूँद में अपार, जलती हुई आग है प्यार, बुझता हुआ चिराग है प्यार, चिड़ियों का चहकना है प्यार, शेर की दहाड़ में है प्यार, पत्ते के गिरने में है प्यार, हवाओं के चलने में है प्यार, फूल के खिलने में है प्यार, जीवन का सार है प्यार, छोटा सा सपना है प्यार, कोई अपना है प्यार । डॉ0 चन्द्रकान्त तिवारी फरीदाबाद 🌿🌷🌷🌿
[11/06, 11:44 a.m.] 🌹: खामोशियों की आवाज कौन सुनता है,
कटे पेड़ों की आवाज कौन सुनता है ।
कहने को तो पक्षियों की भी बोली होती है,
पर उनकी बात कौन सुनता है ।
छोड़ आते हैं रिश्तों को मरघट पर ,
घर तो दिखावे का रोना होता है ।
ये सागर. ये लहरें ये लहरों का बढ़ना ,
गीली रेत पर पाॅव का धसना ,
पल में बदलती ये सूरज की छाया ,
रेत का घर किसने बनाया ।
लहरों का तट को मिलना दोबारा,
घर के ददॆ को कौन सुनता है ।
खामोशियों की आवाज कौन सुनता है ।
ददॆ अब भीतर ही रह जायेगा,
न सुनेगा कोई और न सुना पायेगा ।
सच में आवाजों के शहर में,
खामोशी पहचानेगा कौन ।
फिर भी मन तो सपना बुनता है ।
खामोशियों की आवाज कौन सुनता है ।
.
डॉ0 चन्द्रकान्त तिवारी फरीदाबाद

सुधांशु द्विवेदी said...

मन मानता नहीं, तुझे देखे बगैर😊

मन मानता नहीं है
तुझे देखे बगैर।
पढ़ता कम,
तुझे देखता ज्यादा है
एक छन बैठता है जो,
पढ़ने को,
फिर तुरंत ही देखने को तुझे,
मन मचल जाता है।
एक बार ठान कर,
दूर करके खुद से तुझे,
पढ़ने तो बैठा था।
फिर तुझे यूं तन्हा देख
कोई?
फिर से मुझे याद दिलाता है।
मन तो करता है,
ना देखूं तुझे पर,
वश ही नहीं मेरा,
मुझ पर।
लगाव तुझसे ज्यादा है।
ज्यों ही हाथ बढ़ाता है छूने तुझे,
एक छन,
ठिठक कर मन स्तब्ध हो जाता है।
सोचता है,
ठाना था मैंने पढ़ने को।
पर खुद से तुझे बिछड़ता देख,
मेरा रोम रोम रोने लग जाता है
सोचता हूं,
छूकर तुझे मिटा दूं सब बैर।
ऐसा लगा मुझे,
तू ही है अपना, तू ही है गैर,
क्या करूं?
मन मानता नहीं,
तुझे देखे बगैर । ।😂

Sudhanshu D Dwivedi😊