Thursday, September 10, 2009

महादेवी वर्मा


महादेवी जी का जन्म सन १९०७ में फ़रूखाबाद में हुआ था. उनके पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा जो एक वकील थे और माता श्रीमती हेमरानी देवी दोनो ही शिक्षा के अनन्य प्रेमी थे. उनकी शिक्षा दीक्षा मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में हुयी. उन दिनों के प्रचलन के अनुसार उनका विवाह छोटी उम्र में ही हो गया था परन्तु महादेवी जी को सांसारिकता से कोई लगाव नहीं था अपितु वे तो बौध धर्म से बहुत प्रभवित थीं और स्वयं भी एक बौध भिक्षुणी बनना चाह्तीं थीं. विवाह के बाद भी उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी और सन १९३३ में इलाहबाद विश्वविध्यालय से संस्कृत में परा स्नातक की उपाधि हासिल की. प्रयाग महिला विध्यापीठ में प्रधानाचार्य के पद पर कार्य करने के बाद वे वहीं कुलपित भी नियुक्त हुयीं. सुप्रसिध हिन्दी पत्रिका 'चांद' की संपदक के रूप में भी उन्होंने कार्य किया. उनकी काव्य प्रतिभा के लिये उन्हे सेक्सरिया सम्मान से विभूषित किया गया. वे राष्ट्रपति द्वारा पदमविभूषण से भी सम्मानित की गयीं. ११ सितम्बर १९८७ को उनकी जीवन लीला सामप्त हो गयी.

हिन्दी साहित्य के छयावादी काल के चार प्रमुख स्तंभों में सुमित्रानन्दन पन्त,जयशंकर प्रसाद और सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के साथ महादेवी जी की गिनती की जाती है.
शिक्षा और साहित्य प्रेम महदेवी जी को एक तरह से विरासत में मिला था. महादेवी जी में काव्यरचना के बीज बचपन से ही विधमान थे. छ: सात वर्ष की अवस्था में भगवान की पूजा करती हुयी मां पर उनकी तुक्बन्दी :
ठंडे पानी से नहलाती
ठंडा चन्दन उन्हे लगाती
उनका भोग हमें दे जाती
तब भी कभी न बोले हैं
मां के ठाकुर जी भोले हैं.
वे हिन्दी के भक्त कवियों की रचनाओं और भगवान बौध के चरित्र से अत्यन्त प्रभावित थीं. उनके गीतों में प्रवाहित करुणा के अनन्त स्त्रोत को इसी कोण से समझा जा सकता है. वेदना और करुणा उनके गीतों की मुख्य प्रवत्ति है. असीम दु:ख के भाव में से ही उनके गीतों का उदय और अन्त दोनो होता है.
उनकी कुछ प्रमुख रचनायें हैं-
स्म्रति की रेखायें ,दीप शिखा, निहार,रश्मि,नीरजा, सान्ध्य गीत
इसके अतिरिक्त श्रन्खला की कडियां, और अतीत के चलचित्र के नाम से उन्होने अनूठे रेखाचित्र हिन्दी को दिये.

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