Thursday, September 10, 2009

मैं नीर भरी दु:ख की बदली!

मैं नीर भरी दु:ख की बदली!
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रन्दन में आहत विश्व हंसा,
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झर्णी मचली!
मेरा पग पग संगीत भरा,
श्वासों में स्वप्न पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय बयार पली,
मैं क्षितिज भ्रकुटि पर घिर धूमिल,
चिंता का भार बनी आविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन अंकुर बन निकली!
पथ न मलिन करता आना,
पद चिन्ह न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में,
सुख की सिहरन हो अंत खिली!
विस्त्रत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही
उमडी कल थी मिट आज चली!

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