Thursday, September 10, 2009

तुम मुझमें प्रिय!

तुम मुझमें प्रिय! फिर परिचय क्या
तारक में छवि, प्राणों में स्म्रति.
पलकों में नीरव पद की गति
लघु उर में पुलकों की संस्रति,
भर लायी हूं, तेरी चंचल
और करूं जग में संचय क्या!
तेरा मुख सहास अरुणोदय,
परछायी रजनी विषादमय,
वह जाग्रति वह नींद स्वप्न्मय,
खेल-खेल थक-थक सोने दे
मैं समझूंगी स्रष्टि प्रलय क्या!
तेरा अधर विचुम्बित प्याला
तेरी ही स्मित मिश्रित हाला,
तेरा ही मानस मधुशाला,
फिर पूछूं क्या मेरे साकी!
देते हो मधुमय विष्मय क्या?
रोम रोम में नंदन पुलकित,
सांस- सांस में जीवन श्त-शत,
स्वप्न-स्वप्न में विश्व अपरिचित,
मुझमें नित बनते मिटते प्रिय!
स्वर्ग मुझे क्या निष्क्रिय लय क्या?
हारूं तो खोऊं अपनापन
पाऊं प्रियतम में निर्वासन,
जीत बनूं तेरा ही बन्धन
भर लाऊं सीपी में गागर
प्रिय मेरी अब हार विजय क्या?
चित्रित तू मैं हूं रेखाक्रम,
मधुर राग तू मैं स्वर संगम,
तू असीम मैं सीमा का भ्रम,
काया छाया में रहस्यमय.
प्रेयसि प्रियतम का अभिनय क्या
तुम मुझमें प्रिय! फिर परिचय क्या

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