Thursday, September 10, 2009

वे मुस्काते फूल नहीं

वे मुस्काते फूल नहीं
जिनको आता है मुर्झाना,
वे तारो के दीप नहीं
जिनको भाता है बुझ जाना
वे सूनो सो नयन,नहीं
जिनमें बनते आंसू मोती,
वह प्राणों की सेज,नही
जिसमें बेसुध पीडा, सोती
वे नीलम के मेघ नही
जिनको है घुल जाने की चाह
वह अनन्त रितुराज,नही
जिसनो देखी जाने की राह
ऎसा तेरा लोक, वेदना
नही,नहीं जिसमें अवसाद,
जलना जाना नहीं नहीं
जिसने जाना मिट्ने का स्वाद
क्या अमरों का लोक मिलेगा
तेरी करुणा का उपहार
रहने दो हे देव अरे
यह मेरे मिटने क अधिकार
--महादेवी वर्मा

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