Monday, November 16, 2009

चौराहा

पुरानी सड़क का सबसे खूबसूरत बाजार चंदनी चौक है। जहां सदा मेला लगा रहता है। सड़क के दोनों ओर फुटपाथ पर दुकाने सजी हुई हैं। रंग-बिरंगे खिलौने। भालू, बंदर, गाय, बत्तख और न जाने कैसे कैसे खिलौने थे जिन्हें देखकर किसका मन न ललचाये। एक दुकान पर कुछ लड़कियां चूड़ियां खरीद रही थीं। १० वर्षीय रीना दूर से खड़ी चूड़ियों की दुकान को देख रही थी। फिर कुछ सोंचकर दुकान पर आई और दुकानदार से पूंछा, "ये हरी-हरी चूड़ियां कैसी दीं?" "२४ रुपये दर्जन"। "२ चूड़ियां देना।" दुकानदार ने उसे दो चूड़ियां दीं। वह एक एक चूड़ी दोनों हांथों में पहनकर बहुत खुश हुई। फिर उसे ध्यान आया कि उसके पास तो पैसे भी नहीं हैं। घर में पैसे नहीं हैं यह बात वह बहुत अच्छे से जानती थी। पिता बीमार रहते थे। मां लोगों के घर बर्तन साफ करती थी। जैसे तैसे घर का खर्चा चल रहा था। रीना पिता की देखभाल व घर का चूल्हा चौका करती। उसने भी कुछ काम करके पैसे कमाने की सोंची। फिर वह काम मांगने इधर उधर जाने लगी। पर सब उसे बच्ची कहकर भगा देते। तभी उसे विचार आया कि वह चौराहे पर जाकर अपने लिये कोई काम देखे। अक्सर उसके सोनू भईया वहां अखबार बेचते और राधा गजक बेचती। यह सब देखकर रीना ने सोंचा कि वह भी कुछ काम करेगी। कभी कभी रीना सोंचती वह भीख मांगेगी पर लोग क्या कहेंगे। वह यह जानती थी कि भीक मांगना अच्छी बात नहीं है। चोरी करना भी पाप है। पर नाटक तो किया ही जा सकता है। उसने कुछ सोंचकर अपना एक हांथ फ्राक में छुपा लिया और भीक मांगने लगी। "बाबू जी पैसे दे दो। एक नहीं तो दो दे दो!" ऎसे कभी उसे पैसे मिलते कभी दुत्कार। एक बार रीना चौराहे पर भीक मांग रही थी। लाल बत्ती हुई तो एक तिपहिया आकर रुका। रीना ने उससे पैसे मांगे। तिपहिये में बैठे व्यक्ति ने उससे पूंछा, "बिटिया तुम भीख क्यों मांग रही हो? तुम्हारी क्या मजबूरी है?" "मुझे हरी हरी चूड़ियां खरीदनी हैं अंकल जी। मैं आपसे भीक नहीं मांग रही बल्कि अपना अभिनय दिखा रही हूं।" "पर तुम्हारा तो एक ही हांथ है फिर २ चूड़ियां क्या करोगी?" "नहीं अंकल जी मेरा हांथ टूटा नहीं है बल्कि मैं अपाहिज होने का नाटक कर रही हूं।" कहते हुये उसने अपना हांथ फ्राक से बाहर निकाल दिया। "तुम एक दिन महान अभिनेत्री बनोगी।" कहते हुये उस व्यक्ति ने रीना के हांथ में बीस रुपये पकड़ा दिये। "पर अकंल इतने पैसे.." बत्ती हरी हो चुकी थी। अंकल जी का तिपहिया जा चुका था। लाल से हरी व संतरी होती बत्तियों को देखते हुये रीना सोंच रही थी कि क्या वह कभी बड़ी अभिनेत्री बन सकेगी।
--शरद आलोक

1 comment:

निर्मला कपिला said...

सुन्दर लघु कथा । शुभकामनायें