Wednesday, November 25, 2009

शेरनियों का सेवा सप्ताह

शहर के बीचों बीच एक स्कूल की खण्डहरनुमा खपरैल वाली इमारत. स्कूल के भीतर बच्चे जमीन पर बैठ्कर रट्टा लगा रहे थे. कमरों की बिना पल्लों वाली खिड्की पर चढ्कर कुछ शरारती बच्चे उत्सुकता वश बाहर झांक रहे थे. क्लास में अध्यापक नहीं था. शायद पूरे विध्यालय में एक या दो अध्यापिकयें ही बच्चों को पढाने के लिये रखी गयीं थीं. इनमें से किसी के पास क्लास में जाने की फ़ुर्सत नहीं थी. वो शट्लकाक की तरह इधर उधर भाग रहीं थीं. उनके हावभाव से ऐसा लग रहा था जैसे बैठे बिठाये आफ़त आ गयी हो.
बच्चों को कपडों और स्कूल की इमारत को देखकर लगता था कि यही असली भारतीय स्कूल हॊ और यहां शुध भारतीय नागरिकों की सन्तानें भारतीय माहौल में पढ्ती हैं. मल्टीनेशनल्स के प्रदूषण से बिल्कुल मुक्त.
टूटे-फूटे, बिना प्लास्टर की दीवार पर एक खूबसूरत बैनर टंगा था. बैनर पर लिखा था, 'सेवा सप्ताह....प्रायोजक : शेरनियां'. जो इन सेविकओं के बारे में पहले से न जानते रहे हों, वे बैनर पढ्कर डर भी सकते हैं. जब शेरनियां करेंगी सेवा तो शहर में बचेगा कौन? लेकिन हकीकत यह थी कि लायंस क्लब की तमाम महिलायें स्वयं को शेरनियां कहे जाने से पुलकित हो जाती हैं और गौरवान्वित मह्सूस करती हैं.
बैनर के नीचे रंग बिरंगे ईस्ट्मैन कलर वाली साडियां पहने बेडौल जिस्म की तीन-चार महिलायें भारी-भारी पर्स लट्काये खडी हैं. बेचैन सी.
कैमरा बैनर का क्लोज अप लेकर जूम बैक होता है...कट.... एक महिला की कलाई घडी का क्लोज अप. साढे दस बजे हैं,कट..
मिसेज कत्याल: उफ! साढे दस बज गये हैं. गर्मी के मारे बुरा हाल है.

एक पंखा तक नहीं है इस स्कूल में .... न जाने कब आयेंगे ज़ोनल चेयरमैन तब तक इस धूप में सारा मेक अप ही बह जायेगा. घंटा भर की मेहनत दस मिनट में बर्बाद हो जायेगी.
मिसेज शर्मा: मेक अप ही नहीं चेहरे का रंग ही बदल जायेगा...(हंसती है) घर लौटेंगी तो मिस्टर कात्याल घर में घुसने नहीं देंगे. कहेंगे पता नहीं कौन आ गयी मेरी बीवी बनकर.....(फ़िर तेज हंसी)....

मिसेज कात्याल: अपको तो मजाक सूझ रह है. लौट्कर जाइयेगा तो आपना भी चेहरा देखियेगा आईने में.....कहेंगी ओ गौड! ऎसी भूतनी लग रही थी मैं...अगली बार से तौबा कर लेंगी इस सर्विस वीक से...

मिसेज गुप्ता: यार यह तो पहला एक्सपीयरेन्स है. पहले तो मैं बहुत एक्साइटेड फ़ील कर रही थी कि स्कूल में जायेंगे, बच्चों के मुस्कुराते हुये चेहरे होंगे. उन्हें टाफ़ियां दूंगी, केले दूंगी.....पप्पी भी ले लूंगी....छिह! अब तो उबकाई आती है. कैसे गन्दे बच्चे हैं, कैसा स्कूल है .टीचर को देखा है....बूढी सी मरियल सी.....गंदी धोती पहन रखी है..स्लीपर डाल रखा है पैरों में.....यह क्या पढाती होगी बच्चों को? मैं तो महरी न रखूं इसे अपने यहां.....मेरे वो कहते हैं महरी को देखकर घर का स्टेटस पता चलता है ऎसे गन्दे कपडों में खाना दें तो बच्चे भी फ़ेंक दें.....छिह
मिसेज शर्मा: भई, हिन्दी स्कूल है. हिन्दुस्तानी पढते हैं. कोई कान्वेंट तो है नहीं.
मिसेज गुप्ता: तो क्या हम हिन्दुस्तानी नहीं हैं? हम भी तो कयदे से रहते हैं.......

मिसेज शर्मा: आप लोग बेकार की बहस में पडीं हैं. जरा सोंचिये तो कि अगर यह स्कूल कायदे का होता तो हम यहां सेवा करने क्यों आते? सोंचने वाली बात है न...... हैड क्वार्टर से मैसेज आया है कि आपने एरिया के किसी गन्दे स्कूल को सेलेक्ट कर लें और वहां जाकर सर्विस करें. पूरे वीक में करीब दो दर्जन स्कूल में सेवा की जानी है. इसकी रिपोर्ट भी छ्पेगी अपनी मैगजीन में फ़ोटो के साथ. अच्छी सेवा करने वाले डिस्ट्रिक को प्राइज भी मिलेगा.
मिसेज कात्याल: अरे मिसेज सरोज आप कैमरा तो लाईं हैं न? जब जोनल चेयरमैन आयेंगे तो पांच छ: फ़ोटो खींच लीजियेगा.....एक दो ठो तो ठीक आ ही जायेंगी. और देखिये मैं प्रेसीडेण्ट हूं, जब बच्चों को केले दूंगी तो मुझे सेंटर में रखियेगा.....और खींचने से पहले बोल दीजियेगा...... ऎसा न हो कि चेहरे से पसीना बहता नजर आये फ़ोटो में.
मिसेज सरोज: मैं तो एक दो फ़ोटो से ज्यादा नहीं खीचूंगी....बडी महंगी आती है फ़िल्म. कौन देगा पैसे?
मिसेज गुप्ता: अरे दो चार फ़ोटो भी सर्विस वीक में डोनेट नहीं कर सकतीं? मैं छ दर्जन केले लेकर आयी हूं और मिसेज शर्मा दो सौ टफ़ियां लेकर आयी हैं.

मिसेज सरोज: दो फ़ोटो की बात नहीं है. जब तक पूरा रोल खत्म नहीं होगा, रील निकलेगी नहीं....फ़ोटो खींचना बेकार है.
मिसेज कत्याल: आप लोग फ़िर बेवक्त की शहनाई बजाने लगीं. यहां गर्मी के मारे मेरी जान निकली जा रही है, लगता है मैं बेहोश हो जाऊंगी....मिसेज सरोज मेरी एक फ़ोटो सर्विस करते हुए होगी और दूसरी फ़ोटो जब मैं घण्टा प्रेज़ेण्ट करूंगी तब की...... बस.

मिसेज गुप्ता: घंटा तो दूसरे स्कूल में देना है.....?
मिसेज कात्याल: अब मैं दूसरे स्कूल में नहीं जा पाऊंगी. यहीं पर इतनी देर हो गयी है. मेरे हस्बैंड को हाई टैम्प्रेचर है, परेशान हो रहे होंगे...ऎसा करते हैं कि घंटा प्रेज़ेण्ट करते समय फ़ोटो यहां पर ले ली जायेगी और बाद में घंटा दूसरे स्कूल में दे दिया जायेगा. फ़ोटो भी जल्दी भेजनी है न वर्ना मैगज़ीन छ्प जायेगी और फ़ोटो धरी रह जायेगी. हमारे डिस्ट्रिक का सर्विस वीक में नाम नहीं हो पायेगा.....
मिसेज सरोज: अगर घंटा लेने के बाद टीचर ने वापस नहीं किया तो.....?

मिसेज कत्याल: ठीक कह रहीं हैं आप......अभी समझा देते हैं टीचर को...

एक बूढी टीचर को बुलाकर समझाया जाता है कि घंटा प्रेज़ेण्ट करते समय फ़ोटो खिंचेगी और फ़ोटो खींचने के बाद घंटा तुरन्त वापस कर देना है. मिसेज गुप्ता फ़ुसफ़ुसाती हैं मिसेज सरोज से, 'देखो, ३५ रुपये का घंटा है और ६५ रुपये दिखाकर चार्ज कर लेंगी. मैंने तो छ दर्जन केलेओ खरीदे हैं अपनी जेब से....'
तभी शोर उठता है कि जोनल चेयरमैन आ गये. एक लम्बी सी गाडी से जोनल चेयरमैन उतरते हैं. एक मिनट के भीतर ही सभी शेरनिअयां पर्स से आईना, लिपिस्ट्क, कंघी निकलकर मेक अप में व्यस्त हो जाती हैं. जब तक जोनल चेयरमैन कार से उतर कर स्कूल के भीतर प्रवेश करते हैं. तब तक शेरनिअयों के चेहरे की डेंटिग पेंटिग का काम युधस्तर पर पूरा हो जाता है.
जोनल चेयरमैन को शेरनिअयां घेर लेती हैं. उनके सामने बूढी आध्यापिका को घंटा भेंट किया जाता है. फ़ोटो खिंचती है. एक शेरनी आगे बढ्कर अध्यापिका से घंटा वापस ले लेती है. केले बंट्ना शुरु होते हैं. टफ़ियां भी बंट्ने लगती हैं. बच्चों की संख्या केलोंं से ज्यादा है. केले कम पड जाते हैं. मिसेज कत्याल सुझाव देती हैं कि जिन बच्चों को केले नहीं मिले हैं उन्हें दो दो टाफ़ियां और दे दी जायें. लेकिन मिसेज शर्मा टाफ़ियां देने से इन्कार कर देती हैं. बच्चों के चेहरे उतर जाते हैं और जिन बच्चों को केले मिले हैं वो जल्दी जल्दी खाने लगते हैं तकि कोई उनका केला छीन न ले.

टाफ़ी और केले के वितरण के बाद जोनल चेयरमैन सर्विस वीक के महत्व पर आठ दस लाइन का भषण देते हैं. मिसेज सरोज फ़ोटो खींचने में लगी हैं. शेरनियां कनखियों से कैमरे के लेन्स का एंगिल देख देख कर अपने होंठो को लाल करती नज़र आती हैं.
भषण खत्म होता है. जोनल चेयरमैन चले जाते हैं. उनके जाते ही शेरनियां इस तरह भगती हैं जैसे घण्टा बजने पर बच्चे भागते हैं. आचानक एक शेरनी उल्टे पैर वापस लौट्ती है और दीवार पर टंगा बैनर खींच लेती है..... कट!

--स्नेह मधुर

3 comments:

Udan Tashtari said...

सालों बाद, शायद २००६, आज देखा...बहुत अच्छा लगा!!

अपूर्व said...

भई, हिन्दी स्कूल है. हिन्दुस्तानी पढते हैं. कोई कान्वेंट तो है नहीं.
तो क्या हम हिन्दुस्तानी नहीं हैं? हम भी तो कयदे से रहते हैं.......

यही गर्वपूर्ण संवेदनहीनता ही इस देश का भविष्य बनती जा रही है अब...
बहुत सटीक पोस्ट लाये हैं आप..शुक्रिया.

हरकीरत ' हीर' said...

मिसेज कात्याल: अरे मिसेज सरोज आप कैमरा तो लाईं हैं न? जब जोनल चेयरमैन आयेंगे तो पांच छ: फ़ोटो खींच लीजियेगा.....एक दो ठो तो ठीक आ ही जायेंगी. और देखिये मैं प्रेसीडेण्ट हूं, जब बच्चों को केले दूंगी तो मुझे सेंटर में रखियेगा.....और खींचने से पहले बोल दीजियेगा......बहूत खूब ....अच्छी टांग पकड़ी है आपने ....खींचते जाइये ....!!